काशी विश्वनाथ धाम यात्रा | Kashi Vishwanath Temple Story in Hindi

काशी जो की 12 ज्योतिलिंग में से एक है। जिसे काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) के नाम से जाना जाता है। यह वर्तमान में बनारस के रूप में विश्वविख्यात है। यह दुनिया का सबसे पुराना शहर है, जिसका इतिहास 3000 वर्ष से भी अधिक पुराना है। यहाँ की गलियों में इतिहास, आस्था और संस्कृति की सुगंध बसी है। गंगा नदी के तट के किनारे बसा हिन्दू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल अध्यात्म का केंद्र भारत की आध्यात्मिक राजधानी है। काशी एक ऐसा शहर है जहाँ जीवन और मृत्यु एक साथ बहते हैं। काशी न केवल हिन्दू धर्म का बल्कि बौद्ध, जैन और सिख धर्म के लिए भी गहन महत्व रखता है। काशी सप्तपुरी में से एक है। इस blog में हम काशी की आध्यात्मिक विशेषता, सांस्कृतिक विरासत और काशी पर्यटन के बारे में बताएँगे।
Table of Contents
1 ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि

वाराणसी का नाम दो नदियों वरुणा और असि के मिलन से पड़ा है। ऋग्वेद, अथर्ववेद और स्कंद्पुराण जैसे शास्त्रों में काशी का उल्लेख मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने स्वयं इस शहर की स्थापना आज से लगभग 5000 वर्ष पहले की थी। काशी शहर को मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है।
काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) को ज्ञान, शिक्षा, संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता है। इस भूमि ने दुनिया को कबीर, तुलसीदास, पण्डित रवि शंकर जैसी विभूतियों को दिया है। सारनाथ जो की यहाँ से कुछ किलोमीटर ही दूर है जहाँ से जहाँ भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। और यह बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र है।
2 वाराणसी: भारत की आध्यात्मिक राजधानी का सफ़रकाशी विश्वनाथ धाम
काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है, जहाँ लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना से दर्शन करने आते हैं। स्वर्ण शिखर पर 800 किलो सोने की परत चढ़ी हुई है पुराणों के अनुसार यह लिंग स्वम्भू है। (स्वयं प्रकट) मन्दिर के गर्भगृह में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
ज्ञानवापी कुंड मन्दिर परिसर में स्थित इस कुंड का जल अमृततुल्य माना जाता है। किंवदंती है कि यहाँ शिव ने माता पार्वती को ज्ञान दिया था। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर 2019 में बना यह 400 मीटर लंबा गलियारा मंदिर तक पहुँच को आसान बनाता है, जिसमें 24 मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ।
3 काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना

इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य मुख्य मंदिर को गंगा नदी से जोड़ना, रास्ते चौड़ा करना, मूल संरचना को सुरक्षित रखना और काशी टूरिज्म को बढ़ावा देना था। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर शुरुआत 8 मार्च 2019 को हुई थी। इस कॉरिडोर को बनाने में 400 से अधिक भवनों को आधिकारिक रूप से हटाया गया था।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर 5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। अब यहां 24 घंटे पेयजल, विश्राम स्थल और शौचालय की व्यवस्था मिलती है। इस योजना का महत्वपूर्ण फायदा यह है कि अब आप गंगा स्नान के बाद सीधे मंदिर दर्शन के लिए जा सकते है। इस कॉरिडो का उद्घाटन माननीय नरेंद्र मोदी के द्वारा 13 दिसंबर 2021 को किया गया था।
4 काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) जाने का सही समय
वैसे तो काशी जाने के लिए समय का इंतजार करने का वक्त नहीं, बल्कि जब मौका मिले बाबा विश्वनाथ के दर्शन पर निकल जाना चाहिए, लेकिन यदि आप मौसम, भीड़, त्योहार या किसी विशेष योजना के लिए जाना चाहते हैं, तो यह जानकारी आपके लिए है। अगर आप त्योहारों का मजा लेना चाहते हैं, तो आप अक्टूबर से मार्च के बीच यहां जा सकते है।
यह वक्त दिवाली, देव दिवाली, मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि का है। इस समय आपको दिव्य अनुभव की अद्भुति मिलेगी।इस समय यहां आपको अत्यंत भीड़ चारों तरफ शोरगुल गंगा आरती और सुबह की ना सवारी का आनंद लेने को मिलेगा। इसके अलावा जुलाई से सितम्बर में यहां आना उपयुक है, क्योंकि यह वक्त सावन मास का भी है।
सावन में महादेव की विशेष पूजा का महत्व है। इस समय कावड़ यात्रा भी होती है। लाखों श्रद्धालु मिलो दूर से यहां गंगा में डूबकि लगाने आते है, लेकिन मानसून के समय गंगा का जल स्तर बढ़ने से घाटों को बंद कर दिया जाता है।काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) के दर्यशन के लिये आप यहां आप सड़क मार्ग रेलमार्ग और हवाई मार्ग द्वारा आ सकते हैं।
5 आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
वाराणसी की पहचान यहाँ के घाटों से है। जहाँ सुबह से शाम तक धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं। गंगा किनारे बसे यह घाट देसी ही नही बल्कि विदेशी पर्यटक का भी ध्यान केन्द्रित करता है। काशी में वर्तमान में 84 घाट शामिल है। जिसमे से कुछ महत्वपूरण घाट है, जिसमे दशाश्वमेध घाट जिसके बारे में कहाँ जाता है, कि भगवान ब्रह्मा ने यहाँ दस अश्वमेध यज्ञ किए थे। मणिकर्णिका घाट यह घाट पर्यटक को सबसे अधिक आकर्षित करता है, क्यूँकि यहाँ अन्तिम संस्कार किया जाता है।
यहाँ शव को waiting list में रखा जाता है यहाँ बहुत से शव एक साथ जल रहे होते है, जो की पर्यटक को हैरान करता है। माना जाता है की यहाँ मृत्यु होना मोक्ष की प्राप्ति के समान है। गंगा आरती यहाँ के घाट की गंगा आरती देखने पर्यटक दूर-दूर से आते है। संध्या के समय दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा आरती एक अलौकिक अनुभव है। पंडितों के मंत्रोच्चार, दीपों की रोशनी और घंटियों की ध्वनि मन को शांति से भर देती है।
अस्सी घाट वाराणसी के सबसे प्रसिद्ध और जीवंत घाटों में से एक है। यह शहर के दक्षिणी छोर पर स्थित है और यहाँ असि नदी का गंगा नदी से संगम होता है, जिसके कारण इसका नाम “अस्सी घाट“ पड़ा। इस घाट पर अक्सर साधु-संत, योगी और कलाकार देखे जा सकते हैं। यहाँ कवि सम्मेलन, संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।
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6 काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) के प्रसिद्ध व्यंजन

बनारस की हर सुबह कचौड़ी और जलेबी के बिना अधूरी है। यहां आपको सुबह नाश्ते में पहले कचौड़ी और सब्जी खाने को मिलेगी। इसके बाद आपके स्वाद को बदलने के लिए गरमा-गरम बनारसी जलेबी आपका इंतजार कर रही होती है। इस मीठे और नमकीन कॉम्बो का ज़ायका आपको बनारस के ठठेरी बाजार, गोदौलिया और लंका में मिलता है।
मलाईयो (निमिष) यह है सर्दियों की मिठाई बनारस में यदि इसका स्वाद लेना चाहते हैं, तो आप सर्दी के टाइम काशी दर्शन के लिए आ सकते हैं। यह मिठाई दूध के झाग और केसर के इस्तेमाल से तैयार होती है। यह मिठाई मुंह में जाते ही घुल जाने वाली है। इसका ज़ायका आपको नवंबर से फरवरी तक मिलता है।
इसके अलावा आपको यहां टमाटर चाट, मलाईदार लस्सी, बनारसी तमकुनी चाट, बनारसी शरबत, बनारसी पान जिसमें आपको कई फ्लेवर जैसे मीठा, सादा, गुलकंद और सिल्वर पान मिलता है पान के बिना बनारसी ज़ायका फीका है।
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7 बनारस के संगीत घराने: शास्त्रीय परंपरा के संवाहक
बनारस भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रमुख घरानों में एक बनारस घराना का जन्मस्थान है यहाँ के संगीत की अपनी विशिष्ट शैली है इस शैली की खासियत यह है की यह भावपूर्ण गायन है। जिसमे भक्ति, श्रृंगार और लोक संगीत का सम्मिश्रण होता है। इसमें प्रमुख गायक पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, गिरिजा देवी, राजन-साजन मिश्र, सिद्धेश्वरी देवी शामिल है।
बनारस की तबला परंपरा को “बनारस बाज” कहा जाता है, जिसकी दुनिया में एक अलग पहचान है। तबला शैली की विशेषता कठिन कायदे और रेले: इसमें जटिल लयकारी और तकनीकी प्रवीणता देखने को मिलती है। फरमाइशी तुकड़ों में माहिरता: बनारस के तबला वादक उस्ताद कंठे महाराज और किशन महाराज ने इसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।
यदि प्रमुख तबला वाधक की बात की जाए पंडित कंठे महाराज पंडित किशन महाराज पंडित सामता प्रसाद पंडित अनोखे लाल मिश्र है।
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8 काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) वास्तुकला और विशेषता

काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि हिन्दू वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है। मंदिर का हर एक हिस्सा चाहे गर्भगृह हो या मंदिर का शिखर या फिर सोने से मढ़े कलश सब जगह आपको कला, परम्परा, दिव्यता का संगम देखने को मिलेगा। काशी विश्वनाथ मंदिर की निर्माण शैली उतर भारतीय नागर शैली में निर्मित है।
जो कि अपनी खड़ी दीवारों और उन्नत शिखर के लिए जाना जाता है। मंदिर का गर्भगृह एक छोटा शांत और गुण स्थान है जहां स्वंभू ज्योतिर्लिंग विराजमान है शिवलिंग अष्टकोणीय चांदी की वेदी पर विराजमान है। विश्वनाथ का मुख्य शिखर 15.5 मीटर ऊंचा है मंदिर का शिखर और कलश 22 कैरेट सोने से मढ़वाया गया है यह स्वर्ण मंडन 1839 में पंजाब के महाराणा रणजीत सिंह द्वारा भेंट स्वरूप करवाया गया है।
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9 बनारस का आध्यात्मिक पर्यटन
विदेशी पर्यटक वाराणसी की अध्यात्मिकता को समझने गंगा आरती देखने मणिकर्णिका घाट पर जीवन-मरण की प्रक्रिया से रूबरू होते है। दशाश्वमेध घाट पर ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान और आरती का अनुभव अद्वितीय है। संध्या आरती शाम को दीपों, घंटियों और मंत्रों के साथ होने वाली गंगा आरती मन को शांति देती है। अस्सी घाट सुबह के समय यहाँ योग और ध्यान का शांत वातावरण मिलता है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) संस्कृत, योग और भारतीय दर्शन के अध्ययन का प्रमुख केंद्र।विदेशी पर्यटक वाराणसी की अध्यात्मिकता को समझने गंगा आरती देखने मणिकर्णिका घाट पर जीवन-मरण की प्रक्रिया से रूबरू होते है। दशाश्वमेध घाट पर ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान और आरती का अनुभव अद्वितीय है। संध्या आरती शाम को दीपों, घंटियों और मंत्रों के साथ होने वाली गंगा आरती मन को शांति देती है।
अस्सी घाट सुबह के समय यहाँ योग और ध्यान का शांत वातावरण मिलता है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) संस्कृत, योग और भारतीय दर्शन के अध्ययन का प्रमुख केंद्र। योग और वैदिक अध्ययन केंद्र बनारस में कई आश्रम और योग केंद्र हैं जहाँ हठ योग, कुंडलिनी योग और प्राणायाम सिखाया जाता है।
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10 काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple)पूजा और आरती का समय

काशी विश्वनाथ मंदिर में अलग-अलग समय पर विशेष पूजा,आरती और अभिषेक होते है। श्रद्धालु इनका दिव्य आनंद ले सकते है। कुछ विशेष आरतीयों के लिए ऑनलाइन या काउंटर से बुकिंग करवानी आवश्यक होती है।काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) के कपाट रात्रि 3 बजे से ही खुल जाते हैं। और शयन आरती के बाद रात 11 बजे बंद होते है।
यदि आपको मंगला आरती के दर्शन करने है, तो सुबह 3 से 4 के बीच इस आरती में शामिल होने का मौका मिल सकता है। जिसके लिए आपको प्री बुकिंग करवानी होगी। इसके अलावा आप भोग आरती का आनंद ले सकते है, जो कि 11:15 से 12:20 तक होती है। काशी विश्वनाथ संध्या आरती शाम 7 से 8:15 तक होती है। यह मुख्य आरती मानी जाती है।
शयन आरती रात्रि 10:30 से 11 बजे तक होती है। यह आरती मंदिर बंद होने से पूर्व की जाती है। इसके अलावा जलाभिषेक और रुद्राभिषेक सुबह 4 से 6 बजे तक होता है। जिसके लिए आपको ऑनलाइन बुकिंग की आवश्यकता होती है। जिसके बाद आप स्वम्भू पर जलाभिषेक और रुद्राभिषेक का आनंद ले सकते हैं।
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निष्कर्ष
काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) एक ऐसा स्थान है जहां आपको इतिहास, आस्था और आधुनिकता एक साथ देखने को मिलती है। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं बल्की ऐसा स्थान है जहां आकर व्यक्ति को आत्मिक शांति का अनुभव होता है। काशी विश्वनाथ की आरतीयां और पूजन केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि, आध्यात्मिक अनुभव भी है।
यहां लोग घूमने के मायने से नहीं बल्की मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते है। हिन्दू आस्था का बहुत बड़ा केंद्र काशी है जो कि लोगों के दिलों में बसता है काशी यात्रा आपके आध्यात्मिक दिशा को आसानी से बदल देगा।
FAQ
काशी विश्वनाथ धाम वाराणसी में स्थित भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख मंदिर परिसर है। यह “बारह ज्योतिर्लिंगों” में से एक है और इसे मोक्ष प्रदान करने वाला तीर्थ माना जाता है।
यह धाम उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में, पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित है।
मंदिर खुलने का समय: सुबह 3:00 बजे
शयन आरती के बाद बंद: रात 11:00 बजे
(समय मौसम और त्योहारों के अनुसार थोड़ा बदल सकता है।)
नहीं, मंदिर परिसर के भीतर मोबाइल फोन, कैमरा, लैपटॉप आदि प्रतिबंधित हैं। प्रवेश से पहले यह सामान लॉकर्स में जमा करना पड़ता है।
रेल से: वाराणसी जंक्शन से ऑटो/टैक्सी द्वारा।
हवाई मार्ग: लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट (25-30 किमी)।
सड़क मार्ग: देश के सभी प्रमुख शहरों से बस या टैक्सी सेवा उपलब्ध है।
यह परंपरा है कि श्रद्धालु पहले गंगा स्नान करते हैं और फिर भगवान विश्वनाथ के दर्शन करते हैं। पर यह अनिवार्य नहीं है।
हाँ, महिलाओं के लिए अलग कतार की व्यवस्था है ताकि वे भी आसानी से दर्शन कर सकें।
यह एक भव्य परियोजना है जो मंदिर को गंगा घाट से सीधे जोड़ती है। इसमें चौड़े रास्ते, शौचालय, जलपान व्यवस्था, विश्राम स्थल आदि की सुविधा दी गई है।
हाँ, आप विशेष पूजा, रुद्राभिषेक, लघु रुद्र आदि पूजा अनुष्ठान के लिए ऑनलाइन या मंदिर प्रबंधन कार्यालय से बुकिंग कर सकते हैं।
हाँ, नए कॉरिडोर में व्हीलचेयर, रैम्प और अलग प्रवेश मार्ग जैसी सुविधाएँ दिव्यांग जनों के लिए उपलब्ध हैं।