भारत के 10 अद्भुत और रहस्यमयी मंदिर
भारत के रहस्यमयी मंदिर, जिनके बारे में सुन कर आप हैरान हो जायेंगे। जो अपनी आध्यात्मिकता और रहस्यमयता के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। भारत के कोने-कोने में बसे ये मंदिर न सिर्फ आस्था के केंद्र हैं, बल्कि वास्तुकला, खगोलशास्त्र और विज्ञान के ऐसे अद्भुत नमूने हैं जिनके रहस्य आज तक वैज्ञानिकों के लिए पहेली बने हुए हैं। कुछ मंदिरों में पत्थरों से बनी रस्सियाँ हैं, तो कहीं स्वयं प्रकट हुए शिवलिंग, कहीं हवा में तैरता हुआ पत्थर और कहीं ऐसी मूर्तियाँ जो समुद्र की लहरों के साथ डोलती हैं। ये मंदिर चमत्कारों और रहस्यों से भरे पड़े हैं।
Table of Contents
1. कैलाश मंदिर, एलोरा महाराष्ट्र
- यह एक ऐसा मन्दिर है जिसे पहाड़ को काटकर बनाया गया है।
- भारत का यह रहस्यमयी मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा एकाश्म (मोनोलिथिक) मंदिर है।
- पूरे मंदिर को ऊपर से नीचे की ओर एक ही पहाड़ को काटकर बनाया गया है।
- यह मंदिर इतना विशाल और जटिल है कि आधुनिक तकनीक और मशीनों के होते हुए भी इसे बनाना असंभव सा लगता है।
- इस मन्दिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम ने 8वीं शताब्दी में करवाया था।
मन्दिर की विशेषता:
- एलोरा की गुफाओं में स्थित कैलाश मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
- इस मन्दिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम ने 8वीं शताब्दी में करवाया था।
- इस मंदिर को बनाने के लिए लगभग 4,00,000 टन चट्टान को हटाया गया होगा।
- इस मन्दिर की निर्माण अवधि लगभग 18 वर्ष मानी जाती है।
- इस मन्दिर निर्माण प्रक्रिया का कोई भी नक्शा या किसी अन्य प्लान का कोई अवशेष नही मिलता है।
मन्दिर की वास्तुकला:
- मन्दिर को मुख्यत द्रविड़ शैली (Dravidian Style) में बनाया गया है।
- एलोरा की गुफाएँ बौद्ध, हिंदू और जैन कला का संगम प्रस्तुत करती हैं।
- मुख्य मंदिर, उसके प्रवेश द्वार, स्तंभ, हाथी की विशाल मूर्तियाँ, और अंदर की गुफाएँ सब कुछ एक ही पत्थर से तराशी गई हैं।
- यह मंदिर प्राचीन भारतीय वास्तुकला का शिखर है।
वेंकटेश्वर स्वामी तिरुपति बालाजी मंदिर
2. लेपाक्षी मंदिर, अनंतपुर आंध्र प्रदेश
- भारत के रहस्यमयी मंदिर में से एक यह स्थान आंध्र प्रदेश में है।
- यहाँ मंदिर के 70 स्तंभों में से एक स्तंभ जमीन को छूता नहीं है, बल्कि हवा में लटका हुआ है।
- इस स्तंभ के नीचे से कपड़ा आदि निकाला जा सकता है।
मन्दिर की विशेषता:
- इसकी सबसे बड़ी खासियत है हवा में लटका हुआ स्तंभ।
- विजयनगर साम्राज्य के दौरान बना यह मंदिर भगवान शिव, विष्णु और वीरभद्र को समर्पित है।
- मंदिर अपनी अद्भुत मूर्तियों और फ्रेश्को पेंटिंग्स के लिए प्रसिद्ध है।
- अंग्रेजों को इसके रहस्य पर संदेह हुआ और उन्होंने इसे हिलाने की कोशिश की, जिसके बाद यह स्तंभ थोड़ा खिसक गया।
- यह आज भी वैसे ही लटका हुआ है।
- इस मन्दिर का निर्माण 16वीं शताब्दी विजयनगर साम्राज्य के द्वारा किया गया।
- इस मन्दिर में बनी मूर्ति उस समय के जीवनकाल को दर्शाती है।
मन्दिर की वास्तुकला:
- यहां मन्दिर द्रविड़ और विजयनगर शैली का विशिष्ट उदाहरण है।
- इस मन्दिर में नक्काशी और भित्ति चित्रों पर जोर दिया गया है।
- मंदिर की दीवारों पर नृत्य मुद्राओं की नक्काशी इतनी सजीव है कि उन्हें देखकर लगता है मानो मूर्तियाँ सचमुच नाच रही हों।
- मन्दिर की छतें को रामायण, महाभारत और पुराणों के दृश्यों को दर्शाने वाले रंगीन और जीवंत भित्तिचित्र से सजी हुई है।
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3. जगन्नाथ मंदिर, पुरी ओडिशा
- भारत के रहस्यमयी मंदिर, इस मंदिर के शिखर पर लगा झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है।
- साथ ही, मंदिर के ऊपर से उड़ता हुआ कोई भी पक्षी या विमान मंदिर के ठीक ऊपर से नहीं गुजरता।
- सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मंदिर के शिखर की छाया हमेशा अदृश्य रहती है।
मन्दिर की विशेषता:
- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का यह विश्वप्रसिद्ध मंदिर चार धामों में से एक है।
- मंदिर का मुख्य गुंबद सुदूर समुद्र से भी दिखाई देता है।
- मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए इतने बड़े बर्तनों का इस्तेमाल होता है, जिसे एक के ऊपर एक रखकर चूल्हे पर चढ़ाया जाता है।
- मंदिर के प्रवेश द्वार से ही समुद्र की आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है, लेकिन जैसे ही आप मंदिर से बाहर कदम रखते हैं, आवाज वापस आ जाती है।
मन्दिर की वास्तुकला:
- मंदिर की रचना कलिंग वास्तुशैली पर आधारित है, जो नागर शैली का ही एक रूप है।
यह मंदिर अपनी कलिंग शैली की वास्तुकला के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। - 12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा निर्मित यह मंदिर कला, संस्कृति और धार्मिक भावनाओं का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है।
- मंदिर की दीवारों पर देवताओं, देवी-देवियों, पशु-पक्षियों और पुष्पों की अद्भुत नक्काशी की गई है।
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4. कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी असम
- यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ देवी को ‘महामुद्रा’ (मासिक धर्म) होता है। यह भारत के रहस्यमयी मंदिर में से एक है।
- तीन दिनों के लिए मंदिर के गर्भगृह को बंद कर दिया जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इस दौरान देवी रजस्वला होती हैं।
- तीन दिन बाद जब मंदिर खुलता है, तो देवी की मूर्ति पर लाल रंग का चंदन (प्रसाद के रूप में) चढ़ाया जाता है, जो देवी के रक्त का प्रतीक माना जाता है।
मन्दिर की विशेषता:
- इस मन्दिर में मूर्ति की बजाय एक योनी कुंड स्थापित है, जिसकी पूजा की जाती है।
- यह 51 शक्तिपीठों में से महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है।
- यहाँ प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेला लगता है। इसी दौरान देवी रजस्वला होती हैं।
- इस मन्दिर को तंत्र साधना का केंद्र माना जाता है।
मन्दिर की वास्तुकला:
- इसे उत्तर भारतीय नागर शैली तथा असम की स्थानीय “नीलाचल” शैली का संगम माना जाता है।
- यह अपने विशेष गुम्बदनुमा शिखर के कारण प्रसिद्ध है, जो मधुमक्खी के छत्ते जैसा दिखाई देता है।
- मन्दिर का आधार पत्थरों से निर्मित वर्गाकार है। इस पर देवी–देवताओं, पुष्पों और ज्यामितीय आकृतियों की नक्काशी की गई है।
- वर्तमान में मौजूद मन्दिर का पुनर्निर्माण 1565 ईसवीं में किया गया था और यह 11वीं-12वीं शताब्दी के खंडहरों का उपयोग कर के बनाया गया था।
5. वीरूपाक्ष मंदिर, हंपी कर्नाटक
- यह मंदिर अपने रिवर्स मिरर इफेक्ट के लिए प्रसिद्ध है।
- भारत के रहस्यमयी मंदिर, मंदिर के एक खास बिंदु से देखने पर इसकी गोपुरम (मीनार) का प्रतिबिंब उल्टा दिखाई देता है।
- साथ ही, मंदिर का कल्याणमंडप एक अद्भुत संगीतमय स्तंभों से बना है, जिन्हें बजाने पर अलग-अलग स्वर निकलते हैं।
मन्दिर की विशेषता:
- इस मन्दिर की मुख्य विशेषता यहाँ बना गोपुरम, विस्तृत नक्काशी वाले स्तंभ है जो पौराणिक कथा दर्शाते हैं।
- हंपी के खंडहरों के बीच यह मंदिर आज भी सक्रिय है।
- यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है।
- इसका निर्माण 7वीं शताब्दी में शुरू हुआ और विजयनगर के शासकों ने इसका विस्तार दिया।
मन्दिर की वास्तुकला:
- यह मन्दिर द्रविड़ और विजयनगर दोनों शैलियों का उत्कृष्ट उदहारण है।
- इस मन्दिर के गोपुरम की ऊंचाई 50 मीटर है।
- इसमें बहु-स्तरीय पिरामिडनुमा संरचना है, जिस पर देवी–देवताओं और पौराणिक दृश्यों की नक्काशी की गई है।
- गर्भगृह में भगवान शिव का “वीरूपाक्ष” रूप स्थापित है। इसके चारों ओर मंडप और छोटे–छोटे कक्ष बने हैं।
- मन्दिर परिसर में छोटे–छोटे देवालय, प्रांगण, रथोत्सव के लिए सड़क और नदियों के किनारे बने घाट भी शामिल हैं।
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6. बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर तमिलनाडु
- इसे मन्दिर को राजराजेश्वरम मंदिर या बिग टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है।
- यह मंदिर अपनी विशालता, कलात्मकता और वैज्ञानिक दृष्टि से अद्वितीय माना जाता है।
- यह दुनिया का पहला और एकमात्र ग्रेनाइट पत्थर से बना मंदिर है।
- जिसकी 216 फुट ऊँची विशाल गोपुरम (शिखर) की छाया दिन के सबसे महत्वपूर्ण समय, दोपहर में जमीन पर नहीं पड़ती।
मन्दिर की विशेषता:
- बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण चोल वंश के महान शासक राजराजा चोल प्रथम ने 1010 ईस्वी में करवाया था।
- यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे युनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा भी प्राप्त है।
- राजराजा चोल ने इस मंदिर को अपनी साम्राज्य शक्ति, धार्मिक आस्था और स्थापत्य कौशल का प्रतीक बनाया।
- मंदिर का शिखर एक विशाल एकल ग्रेनाइट पत्थर से ढका हुआ है, जिसका वजन लगभग 80 टन है।
मन्दिर की वास्तुकला:
- इस मन्दिर को द्रविड़ शैली में बनाया गया है।
- इस मन्दिर का शिखर दुनिया के सबसे ऊँचें शिखर में से एक है।
- मंदिर का निर्माण लगभग 1,30,000 टन ग्रेनाइट से किया गया है।
- मन्दिर परिसर में नंदी की एक विशाल मूर्ति भी स्थापित है।
- आज से हजार साल पहले इतनी विशाल संरचना का निर्माण बिना आधुनिक मशीनों के, केवल मानव श्रम और वैज्ञानिक ज्ञान से हुआ, यह अपने आप में अद्वितीय है।
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7. निदेश्वर मंदिर, तिरुवनंतपुरम केरल
- इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य है यहाँ स्थापित शिवलिंग, जो स्वयंभू (स्वयं प्रकट) है। जिसका आकार लगातार बढ़ रहा है।
- स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस शिवलिंग की ऊँचाई प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है।
- मान्यता है कि इसी स्थान पर लंकापति रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी।
मन्दिर की विशेषता:
- मंदिर का परिसर अत्यंत शांत और हरा-भरा है, जो साधना और ध्यान के लिए उपयुक्कत वातावरण प्रदान करता है।
- यह केरल की प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है, जो यहाँ आने वाले भक्तों और पर्यटकों को एक सुकून भरा अनुभव देता है।
- यह एक ऐसा स्थान है जहाँ इतिहास, पौराणिक कथाएँ और रहस्य एक दूसरे में गुंथे हुए हैं।
- महाशिवरात्रि का पर्व यहाँ बहुत ही धूमधाम और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
मन्दिर की वास्तुकला:
- निदेश्वर मंदिर केरल की पारंपरिक मंदिर वास्तुकला शैली में बना हुआ है।
- यह शैली तमिलनाडु के विशाल पत्थर के मंदिरों से काफ़ी अलग और विशिष्ट है।
- जबकि केरल शैली में लकड़ी की बारीक नक्काशी और स्थानीय लेटराइट पत्थर का उपयोग प्रमुखता से किया जाता है।
- केरल के हर प्रमुख मंदिर में एक विशाल दीपस्तंभ अवश्य होता है, जो त्योहारों के दौरान जगमगाता है।
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8. करणी माता मंदिर, बीकानेर राजस्थान
- इस मंदिर में 20,000 से भी अधिक चूहे रहते हैं (भारत के रहस्यमयी मंदिर) और इन्हें पवित्र माना जाता है।
- यहाँ आने वाले भक्त इन चूहों के झूठे प्रसाद को ग्रहण करने को अपना सौभाग्य समझते हैं।
- सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इतने चूहों के रहने के बावजूद मंदिर में कोई बीमारी नहीं फैलती।
- बीकानेर में स्थित यह मंदिर चूहों के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
मन्दिर की विशेषता:
- इन काले चूहों को काबा कहा जाता है, यानि की पवित्र चूहा। मान्यता के अनुसार यह चूहे करणी माता के परिवार के सदस्य है।
- इन चूहों के द्वारा छुआ हुआ या खाया हुआ प्रसाद (जैसे दूध, मिठाई) अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है।
- हजारों काले चूहों के बीच यदि किसी श्रद्धालु को दुर्लभ सफेद चूहे श्वेत काबा के दर्शन हो जाएँ, तो इसे अपार सौभाग्य और देवी की विशेष कृपा का प्रतीक माना जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि सफेद चूहा स्वयं करणी माता या उनके पुत्र का अवतार है।
मन्दिर की वास्तुकला:
- करणी माता मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी शिल्प कला और धार्मिक भव्यता का एक उत्कृष्ट नमूना है।
- यह मंदिर सिर्फ अपने ‘चूहों’ के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी स्थापत्य कला के लिए भी प्रसिद्ध है।
- इसकी डिजाइन में राजपूत और मुगल शैली का सुंदर सम्मिश्रण देखने को मिलता है।
- मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही एक विशाल और अलंकृत महाद्वार श्रद्धालुओं का स्वागत करता है। यह चांदी से बना विशाल दरवाजा है।
- इन दरवाजों पर देवी-देवताओं, फूल-पत्तियों और पारंपरिक राजस्थानी अलंकरणों की बेहद बारीक नक्काशी की गई है। ये दरवाजे मंदिर की समृद्धि और कलात्मक महत्व को दर्शाते हैं।
- मुख्य द्वार से अंदर जाने पर एक विशाल सभा मंडप है, जो पूरी तरह से शुद्ध सफेद संगमरमर से निर्मित है।
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9. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर, भरूच गुजरात
- यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ भगवान शिव का शिवलिंग दिन में दो बार ज्वार-भाटा के समय समुद्र की लहरों में पूरी तरह से डूब जाता है। और लहरें जैसे ही पीछे हटती हैं, वह पुनः प्रकट हो जाता है।
- यह अद्भुत मंदिर अरब सागर के तट पर कावा में स्थित है।
- मान्यता है कि इसकी स्थापना भगवान कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध करने के बाद की थी।
- जब समुद्र का ज्वार भाटा आता है, तो लहरें मंदिर के अंदर प्रवेश कर जाती हैं और शिवलिंग को पूरी तरह से ढक लेती हैं।
- और भाटा उतरता है, तो शिवलिंग फिर से दर्शन देता है। इस दौरान लहरों की आवाज इतनी तेज होती है कि मानो शिवलिंग स्वयं गर्जना कर रहा हो।
- यह नजारा देखने के लिए हजारों पर्यटक और श्रद्धालु यहाँ आते हैं।यह भारत का यह रहस्यमयी मंदिर प्रकृति और दैवीय शक्ति का अद्भुत संगम है।
मन्दिर की विशेषता:
- दिन में दो बार, जब भरी ज्वार (High Tide) आती है, तो अरब सागर की लहरें पूरे मंदिर परिसर में प्रवेश कर जाती हैं और शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है।
- इस समय मंदिर में प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित होता है क्योंकि लहरें बहुत तेज और खतरनाक होती हैं।
- भक्त ज्वार आने से पहले मंदिर से बाहर निकल आते हैं और दूर से ही इस अद्भुत नजारे को देखते हुए भगवान शिव का जाप करते हैं।मंदिर से समुद्र का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है, विशेषकर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय।
- माना जाता है कि समुद्र की लहरें स्वयं भगवान शिव का जलाभिषेक करती हैं, जो एक स्वतः होने वाली दिव्य प्रक्रिया है।
- महाशिवरात्रि के पर्व पर यहाँ विशाल मेला लगता है और हजारों श्रद्धालु इस अद्भुत घटना को देखने और पूजा-अर्चना करने आते हैं।
मन्दिर की वास्तुकला:
- अन्य प्रसिद्ध मंदिरों की तरह अत्यधिक भव्यता या जटिल नक्काशी नहीं है।
- यह एक साधारण और कार्यात्मक शैली में बना हुआ है।
- मंदिर का मुख्य हिस्सा (गर्भगृह) अपेक्षाकृत छोटा है, जहाँ स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है।
- गर्भगृह तक पहुँचने के लिए कुछ सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं क्योंकि यह समुद्र तल से थोड़ा नीचे है।
- मंदिर का निर्माण मुख्य रूप से स्थानीय काले और भूरे रंग के बेसाल्ट पत्थर से किया गया है।
- यह पत्थर समुद्री नमक और लहरों के कटाव को सहन करने में अधिक सक्षम होता है। पत्थरों को जोड़ने के लिए मजबूत चूने के गारे का इस्तेमाल किया गया होगा ताकि लहरों के निरंतर प्रहार के बावजूद संरचना मजबूत बनी रहे।
- मंदिर परिसर के समुद्र की ओर एक मजबूत और ऊँची दीवार बनी हुई है। इस दीवार का उद्देश्य आने वाली बड़ी लहरों के प्रभाव को कम करना और मंदिर को सीधे नुकसान से बचाना है।
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10. शनि शिंगणापुर, अहमदनगर महाराष्ट्र
- यह कोई साधारण गाँव नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रयोगशाला है जहाँ आस्था की शक्ति ने कानून और व्यवस्था को एक नया अर्थ दिया है।
- इस गाँव की सबसे बड़ी पहचान यह है कि यहाँ के घरों, दुकानों और यहाँ तक कि बैंकों में भी दरवाजे, ताले या खिड़कियों में जाली नहीं है!
- शिंगणापुर गाँव की पहचान यहाँ स्थापित शनि देव के एक शक्तिशाली स्वयंभू (स्वयं प्रकट) काले पत्थर के विग्रह से है।
- इस आस्था का सबसे बड़ा प्रमाण यहाँ की सहकारी बैंक की तिजोरी है, जिस पर कभी ताला नहीं लगाया गया। लाखों रुपये का लेन-देन होने के बावजूद यहाँ कभी चोरी की घटना नहीं हुई।
मन्दिर की विशेषता:
- इस विग्रह की स्थापना लगभग 300 साल पहले हुई मानी जाती है।
- किंवदंती है कि एक बार इस स्थान पर एक विशाल काले पत्थर से रक्त जैसा तरल पदार्थ रिस रहा था।
- गाँव वालों ने स्वप्न देखा कि यह पत्थर भगवान शनि का प्रतीक है।
- तब से इस पत्थर की पूजा शनि देव के रूप में की जाने लगी।
- मान्यता है कि शनि देव यहाँ न्याय के देवता के रूप में निवास करते हैं।
मन्दिर की वास्तुकला:
- मंदिर एक खुले मंच पर निर्मित है
- कोई विशाल गर्भगृह या जटिल नक्काशी नहीं
- संगमरमर के साधारण प्लेटफॉर्म पर शनि देव का स्वयंभू विग्रह
- पूरा मंदिर परिसर खुला और वातानुकूलित
- सफेद संगमरमर का प्रयोग
- मंदिर में minimalistic दृष्टिकोण
- केंद्र में स्थित शनि देव का प्राकृतिक काले पत्थर का विग्रह
- चांदी की जाली से सज्जित विग्रह स्थल
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निष्कर्ष:
भारत के रहस्यमयी मंदिर, ये दस मंदिर न सिर्फ आस्था के केंद्र हैं, बल्कि ये हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, वास्तुकला के अद्भुत नमूने और प्राचीन विज्ञान के जीवंत प्रमाण हैं। इन मंदिरों ने सदियों से इतिहास, विज्ञान और आस्था के बीच एक सुनहरी कड़ी का काम किया है। ये अद्भुत मंदिर न सिर्फ पत्थरों की इमारतें हैं, बल्कि जीवंत इतिहास के पन्ने हैं जो हमें हमारे गौरवशाली अतीत से जोड़ते हैं। ये हमें सिखाते हैं कि सच्ची आस्था और गहन विज्ञान कभी एक-दूसरे के विरोधी नहीं रहे हैं। इन मंदिरों की यात्रा न सिर्फ एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि एक ऐतिहासिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक खोज भी है।
FAQs
एक ही पहाड़ को ऊपर से नीचे काटकर बनाया गया दुनिया का सबसे बड़ा एकाश्म मंदिर।
मंदिर के ऊपर लगा झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है।
इसकी 216 फुट ऊँची मीनार की छाया दोपहर में जमीन पर नहीं पड़ती।
यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ शिवलिंग ज्वार-भाटे के साथ डूबता और प्रकट होता है।
मंदिर का एक स्तंभ जमीन को छुए बिना हवा में लटका हुआ है।
यहाँ देवी को मासिक धर्म होता है और तीन दिन मंदिर बंद रहता है।
मान्यता है कि ये चूहे करणी माता के परिवार के सदस्य हैं।
यहाँ किसी भी घर में दरवाजे, ताले या खिड़की जाली नहीं हैं।
मान्यता है कि यहाँ का शिवलिंग लगातार बढ़ रहा है।
यहाँ की गोपुरम का प्रतिबिंब उल्टा दिखाई देता है और संगीतमय स्तंभ हैं।