लेपाछी मन्दिर क्यों है ख़ास | Veerabhadra temple in lepakshi
लेपाछी मन्दिर, भारत अपनी प्राचीनता और वैभवशाली वास्तुकला के लिये जाना जाता है। दक्षिण भारत का हर कोना किसी न किसी अद्भुत मंदिर, उसकी कलात्मकता और उससे जुड़े रहस्यों की कहानी कहता है। दक्षिण भारत में एक ऐसा ही जगह है लेपाक्षी मंदिर जो की आंध्र प्रदेश में स्थित है। यह न केवल एक मन्दिर है, बल्कि भारत का जीवंत इतिहास है। जिसके हर पन्ने पर विजयनगर साम्राज्य की शान, विश्वकर्मा के शिल्पियों का हुनर और प्राचीन मिथकों की छाप देखने को मिलती है।
अगर आप सोचते हैं, की पत्थर बोल नही सकते हैं। तो यहाँ आ कर आपकी सोच पर पानी फिरने वाला है। यहाँ के पत्थरों में उकेरी गई हर मूर्ति कुछ कहती है। यहाँ का hanging pillar आपको ही नही बल्कि दुनिया को हैरान कर चुका है। दुनिया भर के इंजीनियरों और पुरातत्वविदों के बीच बनी ये पहेली दुनियाभर में मशहूर है।
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Table of Contents
लेपाक्षी मंदिर क्यों है अद्भुत?
अद्वितीय फ्रेश्को पेंटिंग्स और मूर्तियां:
- इस मंदिर की दीवारों और छतों पर बनी विजयनगर काल की पेंटिंग्स रंग, भाव और विस्तार में अतुलनीय हैं।
- यहाँ की मूर्तियां इतनी सजीव लगती हैं मानो अभी बोल पड़ेंगी।
झूलता हुआ खंभा (The Hanging Pillar):
- मंदिर के नट्य मंडप में 70 खंभे हैं, जिनमें से एक खंभा जमीन को छूता नहीं है।
- उसे नीचे से एक कपड़ा या कागज डालकर दूसरी तरफ से निकाला जा सकता है।
- यह इंजीनियरिंग का एक ऐसा चमत्कार है जिसे आज के दौर में भी दोहराना मुश्किल है।
भारत की सबसे बड़ी अखंड नंदी प्रतिमा:
- मंदिर परिसर में ही एक विशाल ग्रेनाइट चट्टान को तराशकर बनाई गई नंदी की मूर्ति है।
- यह अखंड (एक ही पत्थर से बनी हुई) और भारत में अपनी तरह की सबसे बड़ी मूर्ति है।
विरासत का अद्भुत संगम:
- यह मंदिर पौराणिक, ऐतिहासिक और कलात्मक महत्व का एक दुर्लभ संगम है।
- यहाँ रामायण काल की यादें, विजयनगर साम्राज्य की शक्ति और अविश्वसनीय शिल्प कला एक साथ नजर आती है।
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2. लेपाक्षी मंदिर का भव्य इतिहास
इस मंदिर का इतिहास दो स्थरों पर फैला हुआ है- एक पौराणिक और दूसरा ऐतिहासिक।
पौराणिक इतिहास और नामकरण:
‘लेपाक्षी’ नाम का अर्थ है – ‘ले, पक्षी’ यानी ‘उठ, पक्षी’। यह नाम रामायण काल की एक द्रुहदंत घटना से जुड़ा हुआ है।
- मान्यता के अनुसार जब रावण, सीता माता का हरण करके लंका ले जा रहे थे।
- तो रास्ते में उन्होंने आंध्र प्रदेश के इसी इलाके में विश्राम किया था।
- यहाँ जटायु नाम के एक वीर गिद्ध (पक्षी) ने माता सीता को बचाने के लिए रावण से युद्ध किया।
- रावण ने अपनी तलवार से जटायु के पंख काट दिए और वह घायल होकर यहीं गिर पड़ा।
- इसके बाद, जब भगवान राम और लक्ष्मण सीता माता की खोज करते हुए इस स्थान पर पहुंचे।
- तो उन्होंने जटायु को मरणासन्न अवस्था में पाया। जटायु ने उन्हें सारी घटना कह सुनाई।
- भगवान राम ने दुखी होकर जटायु से कहा, “ले, पक्षी” (उठ, पक्षी)। इसी घटना के कारण इस स्थान का नाम लेपाक्षी पड़ा।
- मान्यता है कि जटायु का अंतिम संस्कार भी यहीं पर हुआ था और मंदिर परिसर में एक विशाल पदचिन्ह को भगवान राम का ही माना जाता है।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- ऐतिहासिक रूप से, लेपाक्षी मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के स्वर्णिम काल में हुआ था।
- इसके निर्माण का श्रेय दो भाइयों – विरुपन्ना और वीरन्ना को जाता है।
- जो राजा अच्युतदेव राय के शासनकाल (1530-1542 ई.) में यहाँ के गवर्नर (अमरनायक) थे।
- माना जाता है, कि मंदिर का मुख्य हिस्सा विरुपन्ना ने बनवाया था।
- यहाँ एक लोककथा प्रचलित है, कि मंदिर निर्माण के दौरान विरुपन्ना पर राजकोष गबन का झूठा आरोप लगा था।
- और उनकी आँखें फोड़ दी गईं।
- कहा जाता है कि विरुपन्ना ने खुद ही अपनी आँखें निकालकर मंदिर की दीवार पर फेंक दी थीं।
- आज भी मंदिर की एक दीवार पर लाल रंग के दो निशान देखे जा सकते हैं।
- जिन्हें विरुपन्ना की आँखों का निशान माना जाता है।
- यह कहानी मंदिर के रहस्य और आकर्षण को और बढ़ा देती है।
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3. विस्तृत वास्तुकला: एक कला-प्रेमी का स्वर्ग
- लेपाक्षी मंदिर विजयनगर स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- यह मन्दिर उस शासनकाल के स्वर्णिम इतिहास और समृद्धता का प्रतिक है।
- लेपाक्षी मंदिर को बनाने की सोच ही आज के इंजीनियर को हैरान करने के लिये काफी है।
- यह मन्दिर अपनी विशालता, अद्वितीय नक्काशी और अकल्पनीय इंजीनियरिंग चमत्कारों के लिए जाना जाता है।
- इस मंदिर की निर्माण शैली विजयनगर स्थापत्य शैली में की गई है।
यह विजयनगर स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मूलतः इसे तीन भागों में बता गया है- मुख्य मंदिर, नट्य मंडप, कल्याण मंडप ।
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4. मुख्य मंदिर: वीरभद्र स्वामी को समर्पित
मन्दिर के मुख्य हिस्से यानि गर्भगृह की बात की जाए तो यह भगवान शिव के रौद्र रूप वीरभद्र को समर्पित है। वीरभद्र, शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए थे, जब दक्ष प्रजापति ने सती के सम्मान में अपने यज्ञ में शिव को आमंत्रित नहीं किया था। इस मन्दिर की अनूठी विशेषता यह है, कि इसे “स्वयंभू लिंग” (स्वयं प्रकट) माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह लिंग प्राकृतिक रूप से यहाँ अस्तित्व में आया था। यह पूरा मंदिर एक विशाल ग्रेनाइट चट्टान पर बना हुआ है, जिसे कलाविहार कहा जाता है, क्योंकि इसकी आकृति एक कछुए जैसी है।
गर्भगृह:
- यहाँ वीरभद्र स्वामी की मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति अपने आप में अद्वितीय है।
- क्योंकि इसमें वीरभद्र को एक पैर पर खड़े हुए दिखाया गया है।
- जबकि दूसरे पैर से वह दक्ष प्रजापति के सिर पर प्रहार कर रहे हैं।
- मूर्ति की भाव-भंगिमा इतनी तीव्र और जीवंत है कि उनका क्रोध साफ झलकता है।
अर्धमंडप और मुखमंडप:
- गर्भगृह के बाहर एक स्तंभों वाला हॉल है।
- यहाँ के स्तंभों पर देवी-देवताओं, योद्धाओं, संगीतकारों और पौराणिक जीवों की अत्यंत बारीक नक्काशी की गई है।
- हर स्तंभ एक अलग कहानी कहता प्रतीत होता है।
शिवलिंग:
- मंदिर परिसर में ही एक और शिवलिंग है जिसके ऊपर एक विशाल नाग (सर्प) की आकृति बनी हुई है।
- इस नाग की विशेषता यह है कि यह पूरी तरह से अखंड है, यानी इसे एक ही पत्थर से तराशा गया है।
- इसमें सात फन हैं, जो शिवलिंग की रक्षा करते हुए दिखाई देते हैं।
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5. नट्य मंडप: जहाँ छुपा है सबसे बड़ा रहस्य
यह स्थान लेपाक्षी मंदिर का सबसे प्रसिद्ध और रहस्यमय हिस्सा है। यह एक स्तंभों वाला हॉल है जो मुख्य मंदिर के सामने स्थित है। इसके 70 स्तंभों में से एक स्तंभ दुनिया भर में मशहूर है – द हेंगिंग पिलर या झूलता खंभा।
झूलता खंभा (The Hanging Pillar):
- इस हॉल का 70वां खंभा जमीन से लगभग एक इंच ऊपर उठा हुआ है।
- आप आसानी से इसके नीचे से एक कपड़ा या अपना हाथ घुमा सकते हैं।
- कहा जाता है कि ब्रिटिश राज के दौरान, उन्होंने यह जानने की कोशिश की, कि यह खंभा कैसे टिका है।
- उन्होंने इसे हिलाने की कोशिश की, जिससे यह खंभा थोड़ा खिसक गया और अब पूरी तरह से हिलने लगा है।
- लेकिन फिर भी गिरता नहीं है।
- इसकी यह अद्भुत संरचना आज तक वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए शोध का विषय बनी है।
- स्थानीय लोगों का मानना है, कि इस खंभे के नीचे से कपड़ा निकालने से सौभाग्य और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
छत की अद्भुत फ्रेश्को पेंटिंग्स (Fresco Paintings):
- नट्य मंडप की छत पर बनी पेंटिंग्स विजयनगर कला का शिखर हैं।
- ये पेंटिंग्स ‘फ्रेश्को’ तकनीक से बनी हैं, जिसमें गीले पलस्तर पर रंगों को उकेरा जाता है।
- सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग 24 फीट x 14 फीट की शिव-पार्वती का विवाह है।
- इस पेंटिंग में सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि और अप्सराएं मौजूद हैं।
- रंगों की चमक और चेहरों के भाव आज भी, सैकड़ों साल बाद, उतने ही जीवंत हैं।
- अन्य पेंटिंग्स में दुर्वासा ऋषि का श्राप, भगवान राम का राज्याभिषेक, और विभिन्न देवताओं के चित्र शामिल हैं।
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7. कल्याण मंडप: अधूरा सपना
यह मंडप मुख्य मंदिर के बाईं ओर स्थित है। माना जाता है कि इसका निर्माण भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह उत्सव के लिए किया गया था। लेकिन यह मंडप कभी पूरा नहीं हो सका। कारण क्या था, यह आज तक रहस्य है। शायद विरुपन्ना के साथ हुई घटना के कारण निर्माण कार्य रुक गया होगा। इसके 38 स्तंभ हैं, जो सभी बेहद सुंदर नक्काशीदार हैं, लेकिन छत कभी नहीं बन पाई।
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8. अखंड नंदी: भारत की सबसे बड़ी एकल पत्थर की नंदी मूर्ति
मंदिर परिसर से थोड़ी दूरी पर, एक विशाल ग्रेनाइट चट्टान को तराशकर नंदी (भगवान शिव का वाहन) की प्रतिमा बनाई गई है। इसकी विशेषताएं हैं:
- आकार: यह मूर्ति 15 फीट ऊँची और 27 फीट लंबी है, जो इसे भारत की सबसे बड़ी अखंड नंदी प्रतिमा बनाती है।
- विवरण: मूर्ति में नंदी के गले में एक घंटी, फूलों की माला और अन्य आभूषणों को अत्यंत यथार्थवादी ढंग से उकेरा गया है।
- सामग्री: इसे एक ही ग्रेनाइट की चट्टान से बनाया गया है, जो इंजीनियरिंग और शिल्प कौशल का एक बेमिसाल नमूना है।
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9. लेपाक्षी मंदिर से जुड़े अन्य रोचक तथ्य
- विरुपाक्ष की आँखें: जैसा कि पहले बताया गया, मंदिर की एक दीवार पर दो लाल निशान हैं।
- जिन्हें विरुपन्ना की आँखों का निशान माना जाता है। यह स्थान आज भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है।
- अखंड नागेश्वर: मंदिर में एक ही पत्थर से तराशा गया सात फनों वाला नाग है।
- जो यहाँ की शिल्प कला का एक और बेजोड़ नमूना है।
- नक्काशीदार रथ: परिसर में एक सुंदर पत्थर का रथ भी है, जो विजयनगर शैली की एक और पहचान है।
निष्कर्ष: एक जीवित विरासत
- लेपाक्षी मंदिर सिर्फ पत्थरों का ढेर नहीं है; यह एक सांस्कृतिक धरोहर है जो हमें हमारे गौरवशाली अतीत से जोड़ती है।
- यह उन अनाम शिल्पकारों की प्रतिभा का स्मारक है, जिन्होंने अपने हाथों से पत्थरों में जान फूंक दी।
- यहाँ का झूलता खंभा हमें याद दिलाता है, कि प्राचीन भारत की विज्ञान और तकनीक कितनी उन्नत थी।
- अगर आप इतिहास, कला, वास्तुकला या रहस्य में रुचि रखते हैं।
- तो लेपाक्षी मंदिर आपके लिए एक तीर्थ स्थान के समान है।
- यह वह जगह है जहाँ इतिहास खुद-ब-खुद बोल उठता है और हर कोना आपको हैरान कर देता है।
- लेपाक्षी की यात्रा सिर्फ एक सफर नहीं, बल्कि एक अविस्मरणीय अनुभव है, जो आपको सदियों पीछे ले जाता है।
- और एक ऐसे युग में छोड़ देता है, जहाँ कला और आस्था की कोई सीमा नहीं थी।
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FAQs
A: यह आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित है, जो बेंगलुरु से लगभग 120 किमी दूर है।
A: मुख्य मंदिर भगवान शिव के रौद्र रूप वीरभद्र स्वामी को समर्पित है।
A: नट्य मंडप का एक खंभा जमीन को नहीं छूता, उसके नीचे से कपड़ा निकाला जा सकता है। यह इंजीनियरिंग का अद्भुत चमत्कार है।
A: ‘ले-पक्षी’ का अर्थ है ‘उठ, पक्षी’। यह नाम रामायण काल में जटायु से जुड़ी घटना से पड़ा।
A: यह एक ही पत्थर से तराशी गई भारत की सबसे बड़ी अखंड नंदी प्रतिमा है, जो 15 फीट ऊँची और 27 फीट लंबी है।
A: मान्यता है कि मंदिर के निर्माता विरुपन्ना ने राजकोष के गबन के झूठे आरोप पर खुद की आँखें निकालकर दीवार पर फेंक दी थीं।
A: 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के दो भाइयों, विरुपन्ना और वीरन्ना ने इसका निर्माण करवाया।
A: नट्य मंडप की छत पर बनी “शिव-पार्वती के विवाह” की 24×14 फीट की फ्रेश्को पेंटिंग सबसे प्रसिद्ध है।
A: यह शिव-पार्वती के विवाह उत्सव के लिए बना मंडप है। विरुपन्ना की दुर्घटना के बाद इसका निर्माण रुक गया, इसलिए इसकी छत नहीं बन पाई।
A: अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा रहता है, क्योंकि मौसम सुहावना होता है।